हाथरस: सत्संग के आयोजन की तैयारी से भगदड़ के बाद तक… हर कदम पर बरती लापरवाही

मौत का सत्संग बने इस आयोजन की तैयारियों से लेकर हादसे के बाद तक तंत्र लापरवाह बना रहा। आयोजन में मौजूद भीड़ के अनुमान को लेकर न तो कोई समन्वय था न ही कोई सटीक जानकारी। घटना के बाद बीस हजार की भीड़ का शोर मचा और मुकदमा होते होते आंकड़ा ढाई लाख पहुंच गया। यह सवाल अब भी अनुतरित है।

खुद आयोजक ने 80 हजार की भीड़ के उल्लेख के साथ अनुमति का आवेदन किया था। बावजूद इसके एसडीएम स्तर से जारी अनुमति आदेश में मौजूद रहने वाली भीड़ के कॉलम में यह उल्लेख नहीं किया कि कितनी भीड़ मौजूद रहेगी। अनुमति आदेश में संख्या का कॉलम खाली है।

शायद यही वजह रही कि भीड़ का अनुमान न होने के कारण कम पुलिस बल लगाया गया। जब दुर्घटना हुई तो अधिकारियों के स्तर से शुरुआत में बीस हजार की अनुमति का जोर दिया गया। पचास हजार से अधिक भीड़ मौके पर मौजूद रहने का अनुमान बताया। इसके बाद रात में 80 हजार की भीड़ की जानकारी कुछ अधिकारियों ने दी।

फिर एक लाख के मौजूद होने का अनुमान जताया गया। रात में मुकदमा होते-होते यह संख्या ढाई लाख कैसे पहुंच गई? कुल मिलाकर भीड़ के अनुमान को लेकर अधिकारियों में समन्वय का अभाव दिखा। इसी सवाल पर अधिकारियों को मुख्यमंत्री ने भी समीक्षा बैठक में घेरा। मगर जवाब नहीं बन सका।

शुरुआत में दो, हादसे के बाद जमा हुईं 32 एंबुलेंस
अलीगढ़-हाथरस। इसे भीड़ का अनुमान न होना कहें या फिर पुलिस-प्रशासन की बदइंतजामी। जब हादसा हुआ तो मौके पर महज दो एंबुलेंस थीं। हादसे के बाद आनन-फानन 32 एंबुलेंस एकत्रित की गईं। ये एंबुलेंस हाथरस-अलीगढ़-मथुरा के अलावा फर्रुखाबाद तक से बुलाईं गईं।

हादसे के बाद सीएमओ को जब लाइन पर लिया गया तो आनन फानन व्यवस्थाएं की गईं। फिर सीएमओ ने हाथरस से 11, अलीगढ़ से पांच, मथुरा से दस, फर्रुखाबाद से एक एंबुलेंस बुलाईं। इसके अलावा पांच एंबुलेंस आसपास के जिलों के हाईवे से बुलाईं गईं। सभी एंबुलेंसों को ट्रॉमा सेंटर बुलाया गया। वहां से शवों व घायलों को दूसरे जिलों के अस्पतालों में भेजा जा सका। सीएमओ हाथरस ने आनन फानन यह व्यवस्थाएं जुटाए जाने की पुष्टि की है।

अब हर बड़े आयोजन में लगेंगे सीसीटीवी, भीड़ नियंत्रण के रहेंगे पुख्ता इंतजाम
हाथरस हादसे की जांच में एक बड़ा सवाल और सबक सामने आया है। अनुमति लेकर इतना बड़ा आयोजन किया जा रहा था। मगर आयोजकों द्वारा समय के साथ सबसे ज्यादा जरूरी संसाधन या सुरक्षा उपकरण सीसीटीवी नहीं लगवाए गए थे। एक तो सवाल ये कि ऐसा क्यों? मगर निर्णय ये लिया गया है कि अब इस तरह के किसी भी आयोजन की सीसीटीवी सहित अन्य जरूरी संसाधनों की सहमति बिना अनुमति नहीं दी जाएगी।

यह पहला मौका नहीं है। अलीगढ़ व हाथरस में इस तरह के बड़े धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। खुद भोले बाबा के सत्संग का आयोजन भी अपने जिले में होता रहा है। आखिरी आयोजन 2022 में हुआ था। हालांकि 2023 में भी इस आयोजन की अनुमति मांगी गई थी। मगर निकाय चुनाव से जुड़ी व्यस्तता का हवाला देकर अनुमति नहीं दी गई थी। इसके बाद अब यह आयोजन हाथरस में किया गया। यह आयोजन भी इतने ही बड़े स्तर पर किया गया, जितने बड़े स्तर पर अलीगढ़ में तालानगरी के मैदान में होता रहा है।

मगर इस आयोजन में प्रशासनिक अनुमति के बाद भी सीसीटीवी नहीं लगवाए गए। न इतनी भीड़ को लेकर निकास या प्रवेश के अलग अलग द्वार बनाए गए। बाबा को जिस रास्ते से आना जाना था। बस उसी रास्ते पर सुरक्षा का पूरा फोकस निजी स्तर पर रखा गया। अब इस हादसे के बाद प्रशासन ने सबक के साथ निर्णय लिया है। आयोजक जब भी इस तरह के आयोजनों की अनुमति लेने पहुंचेंगे तो भीड़ को लेकर सटीक अनुमान पूछा जाएगा।

लिखित में पहले की तरह ही लिया जाएगा। साथ में उसके अनुसार आयोजन स्थल का पूरा ले-आउट मैप भी समझा जाएगा। उसके अनुसार किए जा रहे सुरक्षा व जरूरी इंतजामों पर भी निर्णय लिया जाएगा। साथ में लिखित में ये सभी सहमति लेने के साथ सीसीटीवी की अनिवार्यता की शर्त भी अनुमति में होगी। तभी यह अनुमति जारी होगी। अपर जिलाधिकारी अमित कुमार भट्ट ने बताया कि बड़े आयोजनों में सीसीटीवी अनिवार्य होगा।

अलीगढ़-हाथरस में होते रहते हैं बड़े धार्मिक आयोजन
ब्रज से जुड़ा होने के कारण अलीगढ़ में और ब्रज की द्वार देहरी कहे जाने वाले हाथरस में धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। कभी उनका स्वरूप इलाका, मोहल्ला या क्षेत्र स्तर का होता है, तो कभी शहर, जिला या मंडल स्तर का होता है। कई बार प्रदेश स्तर के आयोजन भी होते रहे हैं।

पिछले वर्ष ही अपने जिले में खैर के गौतम के पास संत निरंकारी समागम हुआ था, जिसमें कई राज्यों के लोग जुटे थे। इसके अलावा बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री की कथा तय हुई थी। मगर बाद में उनका आना स्थगित हो गया था। पिछले दिनों हाथरस में भी एक बड़े स्तर की श्रीराम कथा हुई थी।

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