दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी से तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की तरफ अग्रसर भारत का केंद्रीय बैंक रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने के एजेंडे को अब टालना नहीं चाहता। असलियत में अगले दस वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपये के लेन-देन को बढ़ावा देने व इसे अंतरराष्ट्रीय कारोबार में ज्यादा से ज्यादा स्वीकार्य बनाने के लिए आरबीआई तैयारी कर चुका है।
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी से तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की तरफ अग्रसर भारत का केंद्रीय बैंक रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने के एजेंडे को अब टालना नहीं चाहता। असलियत में अगले दस वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपये के लेन-देन को बढ़ावा देने व इसे अंतरराष्ट्रीय कारोबार में ज्यादा से ज्यादा स्वीकार्य बनाने के लिए आरबीआई तैयारी कर चुका है।
पिछले शुक्रवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा करने के साथ ही आरबीआई के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने “आरबीआई एट 100 इन ए मल्टी ईयर टाइम फ्रेम” नाम से अपना एजेंडा भी प्रकाशित किया है। हाल ही में अपनी स्थापना का 90वां साल मना चुके आरबीआई ने वर्ष 2034 तक किन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर काम करेगा, इसका ब्यौरा इसमें दिया गया है। इसमें रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाना एक प्रमुख पहलू होगा।
विदेश मंत्रालय व वित्त मंत्रालय ने सहयोग दिया
अब जबकि केंद्र में एक बार फिर पीएम नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार स्थापित हो चुकी है तो कहा जा सकता है कि आरबीआई इस बारे में केंद्र सरकार के सहयोग से ही काम करेगा। पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान रुपये को अंतराष्ट्रीय कारोबार करने के लिए कई स्तरों पर विदेश मंत्रालय व वित्त मंत्रालय ने भी सहयोग दिया था।
भारतीय रुपये को विदेश भेजने में कोई रोक-टोक नहीं होगी
रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने का मतलब है कि भारतीय रुपये को विदेश भेजने में या विदेशी मुद्राओं को देश में लाने में कोई रोक-टोक नहीं होगी। दूसरी मुद्राओं के सापेक्ष रुपये की कीमत बाजार के तत्व तय करेंगे। रुपये को मजूबत करने या इसे कमजोर होने से बचाने के लिए सरकार की तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं होगा जैसा अभी किया जाता है। आरबीआई ने अगल दस वर्षों के दौरान इस संदर्भ में चार क्षेत्र गिनाये हैं जहां काम किया जाएगा।
विदेशों में लेन-देन के लिए रुपये उपलब्ध कराना
इसमें पहला है, प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को विदेशों में लेन-देन के लिए रुपये उपलब्ध कराना। भारत के बाहर रहने वालों भारतीयों (पीआरओआई) को रुपये में बैंक खाते की उपलब्धता बढ़ाना। तीसरा, एनआरआई जमा खातों में ब्याज देने को लेकर नई व्यवस्था करना। इस बारे में आरबीआइ ने स्पष्ट तो नहीं किया है लेकिन माना जा रहा है कि एनआरआइ के इन खातों पर अर्जित ब्याज को विदेशों में ट्रांसफर करने की पूरी छूट होगी। चौथा, भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) और भारतीय ब्रांडों को विदेशों में रुपये में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना।
आरबीआई ने वित्तीय सेक्टर में सुधार को आगे बढ़ाने की बात कही
इस एजेंडा प्रपत्र में आरबीआई ने वित्तीय सेक्टर में सुधार को भी आगे बढ़ाने की बात कही है और दुनिया के शीर्ष 100 बैंकों में भारत के तीन से पांच बैंकों को अगले दस वर्षों में शामिल करने का लक्ष्य रखा है। रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने पर चर्चा वर्ष 1991 में आर्थिक उदारवाद की नीति लागू करने के साथ ही जारी है। बीच में कई बार वैश्विक अनिश्चितताओं व भारतीय इकोनमी की की विकास दर में गिरावट आने के बाद सरकार व आरबीआई इस बारे में चुप्पी साध लेती हैं। लेकिन अब आरबीआइ का विचार बदला नजर आ रहा है।
वैश्विक इकोनॉमी से भारत का बढ़ता संपर्क
इसके पीछे मुख्य वजह घरेलू इकोनॉमी की बढ़ती ताकत व वैश्विक इकोनॉमी से भारत का बढ़ता संपर्क है। इस बीच जुलाई, 2022 में आरबीआइ ने भारतीय रुपये में आयात-निर्यात करने की मंजूरी दी थी। इसके बाद भारत ने पहली बार यूएआई से आयातित कच्चे तेल का भुगतान रुपये में किया था। कई देशों के साथ भारतीय रुपये में कारोबार करने की संभावनाओं पर बात हो रही है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी की नई सरकार भी इसे प्रमुखता से आगे बढ़ाएगी।